Tuesday, 13 September 2011

Sambhar Salt Lake

The Sambhar Salt Lake, India's largest inland salt lake, sits 96 km south west of the city of Jaipur (Northwest India) and 64 km north east of Ajmer along National Highway 8 in Rajasthan.

Mythology

The Mahabharata epic mentions this place as part of the kingdom of the demon king Brishparva, as the place where his priest Sukracharya lived, and as the place where the marriage between his daughter, Devayani, and King Yayati took place. A temple dedicated to Devayani can be seen near the lake.

According to a Hindu tradition, Shakambhari Devi, the tutelary goddess of Chauhan Rajputs, converted the forest to a plain of precious metals. People worried about potential feuds for wealth and felt it to be a curse rather than a blessing. They requested her to retract her favor, so she converted the silver to salt. This place still has a temple dedicated to Shakambhari Devi. 

Geography

The lake is actually an extensive saline wetland, with water depths fluctuating from as few as 60 centimetres (24 in) during the dry season to about 3 meters (10 ft) after the monsoon season. It occupies an area of 190 to 230 square kilometers, based on the season. It is an elliptically shaped lake 35.5 km long with a breadth varying between 3 km and 11 km. It is located in Nagaur and Jaipur districts and it also borders the Ajmer district. The circumference of the lake is 96 km, surrounded on all sides by the Aravali hiils.

The Sambhar lake basin is divided by a 5.1 km long dam made of sand stone. After salt water reaches a certain concentration, it will be released from the west side to the eastern side by lifting dam gates. To the east of the dam are salt evaporation ponds where salt has been farmed for a thousand years. This eastern area is 80 km². and comprises salt reservoirs, canals and salt pans separated by narrow widges. To the east of the dam is a railroad, built by the British (before India’s independence) to provide access from Sambhar Lake City to the salt works.

The nearest airport is Sanganer and the nearest railway station is Sambhar. The water is fed to the lake from streams from the rivers Mendha, Runpangarh, Khandel and Karian. The Mendha and Rupangarh are main streams. The Mendha flows from south to north and the Rupangarh flows from north to south.

Temperatures reach 40° Celsius in summer and stay at around 11° Celsius in winter.

Economic Importance

It is India's largest saline lake and made Rajasthan the third largest salt producing state in India. It produces 196,000 tonnes of clean salt every year, which equals 8.7% of India's salt production. Salt is produced by evaporation process of brine and is mostly managed by Shambar Salts Ltd.(SSL), a joint venture of the Hindustan Salts Ltd. and the state government. SSL owns 3% of the eastern lake.
There are 38 clusters of villages surrounding the lake. Major settlements include Sambhar, Gudha, Jabdinagar, Nawa, Jhak, Korsina, Jhapok, Kanseda, Kuni, Tyoda, Govindi, Nandha, Sinodiya, Arwik ki dhani, Khanadja, Khakharki, Kerwa ki dhani, Rajas, Jalwali ki dhani, Devaji ki dhani, Aau and Ulana.

  Ecological importance

Sambhar has been designated as a Ramsar site (recognized wetland of international importance) because the wetland is a key wintering area for tens of thousands of flamingos and other birds that migrate from northern Asia. The specialized algae and bacteria growing in the lake provide striking water colours and support the lake ecology that, in turn, sustains the migrating waterfowl.
Source : http://en.wikipedia.org/wiki/Sambhar_Salt_Lake

 

 





Thursday, 26 May 2011

Shakambhari Mata Sambhar Lake

                                                                     शाकम्भरी माता 





शाकम्भरी देवी का प्राचीन शक्तिपीठ जयपुर जिले के सांभर कस्बे में स्थित है। शाकम्भरी माता सांभर की अधिष्ठात्रीदेवी है और इस शक्तिपीठ से ही इस कस्बे ने अपना यह नाम पाया।

सांभर, पौराणिक, ऐतिहासिक, पुरातात्विक और धार्मिक महत्तव का एक सांस्कृतिक पहचान रही है एशिया की सबसे बड़ी नमक उत्पन्न करने वाली खारे पानी की झील भी यही है। शाकम्भरी देवी के मंदिर की अतिक्ति पौराणिक राजा ययाति की दोनों रानियों देपयानी और शर्मिष्ठा के नाम पर एक विशाल सरोवर व कुण्ड अद्यावधि वहां विद्यमान है जो इस क्षेत्र के प्रमुख तीर्थस्थलों के रूप में विख्यात है। वर्तमान में देवनानी के नाम से प्रसिद्ध इस तीर्थ का लोक में बड़ा माहात्म्य है जिसकी सूचक यह कहावत है देवदानी सब तीर्थो की नानी।

शाकम्भरी देवी के नामकरण के विषय में पौराणिक उल्लेख है कि एक बार इस भू- भाग में भीषण अकाल पड़ने पर देवी ने शाक वनस्पति के रूप में अंकुरित हो जन जन की बुभुक्षाशान्त कर उनका भरण पोषण किया तभी से इसका नाम शाकम्भरी पड़ गया जिसका अपभ्रंश ही सांभर ह|

सांभर पर चौहान राजवंश का शताब्दियों तक असधिपत्य रहा। चौहान काल में सांभर और उसका निकटवर्ती क्षेत्र सपादलक्ष (सवा लाख की जनसंख्या सवा लाख गांवों या सवा लाख की राजस्व वसूली क्षेत्र) कहलाता था।
ज्ञात इतिहास के अनुसार चौहान वंश शासक वासुदेव ने सातवीं शताब्दी ईं में सांभर झील और सांभर नगर की स्थापना शाकम्भरी देवी के मंदिर के पास में की।

सांभर सातवीं शताब्दी ई. तक अर्थात्‌ वासुदेवी के राज्यकरल से १११५ ई. उसके वंशज अजयराज द्वारा अजयमेरू दुर्ग या अजमेर की स्थापना कर अधिक सुरक्षित समझकर वहां राजधानी स्थानांतरित करने तक शाकम्भरी इस यशस्वी चौहान राजवंश की राजधानी रही।

सांभर की अधिष्ठात्री और चौहान राजवंश की कुलदेवी शाकम्भरी माता का प्रसिद्ध मंदिर सांभर से लगभग १५ कि.मी. दूर अवस्थित है। शाकम्भरी देवी का स्थान एक सिद्धपीठ स्थल है जहां जनमानस विभिन्न वर्गो और धर्मो के लोग आकर अपनी श्रद्धा भक्ति निवेदित करते हैं।

शाकम्भरी दुर्गा का एक नाम है, जिसका शाब्दिक अर्थ है शाक से जनता का भरण पोषण करने वाली। मार्कण्डेय पुराण के चण्डीस्तोत्र तथा वामन पुराण (अध्याय ५३) में देवी के शाकम्भरी नामकरण का यही कारण बताया गया है।

इस प्राचीन देवी तीर्थ का संबंध शक्ति के उस रूप से है जिससे शाक या वनस्पति की वृद्धि होती है। सांभर के पास जिस पर्वतीय स्थान में शाकम्भरी देवी का मंदिर है वह स्थान कुछ वर्षों पहले तक जंगल की तरह था और घाटी देवी की बनी कहलाती थी। समस्त भारत में शाकम्भरी देवी का सर्वाधिक प्राचीन मंदिर यही है जिसके बारे में प्रसिद्ध है कि देवी की प्रतिमा भूमि से स्वतः प्रकट हुई थी।

शाकम्भरी देवी की पीठ के रूप में सांभर की प्राचीनता महाभारत काल तक चली जाती है। महाभारत (वन पर्व), शिव पुराण (उमा संहिता) मार्कण्डेय पुराण आदि पौराणिक ग्रन्थों में शाकम्भरी की अवतार कथाओं में शत वार्षिकी अनावृष्टि चिन्तातुर ऋषियोंपर देवी का अनुग्रह शकादि प्रसाद दान द्वारा धरती के भरण पोषण की कथायें उल्लेखनीय है। वैष्णव पुराण में शाकम्भरी देवी के तीनों रूपों में शताक्षी, शाकम्भरी देवी का शताब्दियों से लोक में बहुत माहात्म्य है। सांभर और उसके निकटवर्ती अंचल में तो उनकी मान्यता है ही साथ ही दूरस्थ प्रदेशों से भी लोग देवी से इच्छित मनोकमना, पूरी होने का आशीर्वाद लेने तथा सुख-समृद्धि की कामना लिए देवी के दर्शन हेतु वहां आते हैं। प्रतिवर्ष भादवा सुदी अष्टमी को शाकम्भरी माता का मेला भरता है। इस अवसर पर सैंकड़ों कह संख्या में श्रद्धालु देवी के दर्शनार्थ वहां आते हैं। चैत्र तथा आसोज के नवरात्रों में यहां विशेष चहल पहल रहती है।

शाकम्भरी देवी के मंदिर के समीप उसी पहाड़ी पर मुगल बादशाह जहांगीर द्वारा सन्‌ १६२७ में एक गुम्बज (छतरी) व पानी के टांके या कुण्ड का निर्माण कराया था, जो अद्यावधि वहां विद्यमान है।
शाकम्भरी देवी के चमत्कार से संबंधित एक जनश्रुति है कि मुगल बादशाह औरंगजेब जब स्वयं शाकम्भरी देवी की मूर्ति तोड़ने के इरादे से वहां आया और प्रतिमा नष्ट करने का आदेश दिया तो असंख्य जहरीली मधुमक्खियों का झुण्ड उसकी सेना पर टूट पड़ा तथा सैनिकों को घायल कर दिया तब विवश हो औरंगजेब ने अपनी आज्ञा वापिस ली तथा देवी से क्षमा याचना की।

सारतः शाकम्भरी देवी अपने आलौकिक शक्ति और माहात्म्य के कारण सैंकड़ों वर्षो से लोक आस्था का केन्द्र है।
Source of post http://shakambarimaa.blogspot.com/2009/04/maa-shakambari-adi-parashakti-in.html